आपने बहुत से लोगों को देखा होगा, जो देखने में सादगी से भरे हुए पर चेहरे पर चमक और विचारों में ताजगी होती है। इस बारे में गायत्री महाविज्ञान में पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं... कि साधना करने वाले लोग अपने तप, श्रद्धा और विश्वास से सिद्धि की प्राप्ति कर लेते हैं। हनुमान चालीसा में कहा गया है कि हनुमान जी को अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त थीं, जो कठोर साधना के बाद मिलती हैं। गायत्री महाविज्ञान कहता है...जिन लोगों को यह सिद्धि प्राप्त हो जाती है, उनमे यह लक्षण आ जाते हैं:
* शरीर में हल्कापन और मन में उत्साह होता है। उनका व्यक्तित्व आकर्षक, नेत्रों में चमक, वाणी में बल, चेहरे पर प्रतिभा, गंभीरता तथा स्थिरता होती है, जिससे दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
* शरीर में से एक विशेष प्रकार की सुगंध और दैवी तेज की उपस्थिति प्रतीत होती है।
* त्वचा पर चिकनाई और कोमलता का अंश बढ़ जाता है।
* तामसिक आहार-विहार से घृणा बढ़ जाती है और सात्विक दिशा में मन लगता है। सुख के समय वैभव में अधिक आनंद न होना और दुःख, कठिनाई और आपत्ति में धैर्य खोकर किम्कर्तव्यविमूढ न होना उनकी विशेषता होती है।
* स्वार्थ का कम और परमार्थ का अधिक ध्यान रहता है।
* नेत्रों से तेज झलकने लगता है। वह अपनी तपस्या, आयु या शक्ति का एक भाग किसी को देकर लाभान्वित कर सकता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों पर 'शक्तिपात' कर सकते हैं।
* किसी व्यक्ति या कार्य के विषय में वह जरा भी विचार करता है तो उसके सम्बन्ध में बहुत सी ऐसी बातें स्वयमेव प्रतिभाषित होती हैं जो परीक्षा करने पर ठीक निकलती हैं।
* दूसरों के मन के भाव जान लेने में देर नहीं लगती।
* भविष्य में घटित होने वाली बातों का पूर्वाभास होने लगता है।
* उसके द्वारा दिए हुए शाप या आशीर्वाद सही होने लगते हैं। अपनी गुप्त शक्तियों से वह दूसरों का बहुत लाभ या अंतरात्मा से दुखी होने पर शाप देकर विपत्तियाँ ला सकता है।
पापों का नाश आत्मतेज की प्रचंडता से होता है। यह तेजी जितनी अधिक होती है उतना ही संस्कार का कार्य शीघ्र और अधिक परिमाण में होता है।