Wednesday, November 11, 2009

A Prayer from My Mother's College...

इन शब्दों पर भी जरा विचार कीजिये...

वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ,
पर सेवा पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जाएँ।

हम दीन दुखी निबलों विकलों, के सेवक बन संताप हरें,
जो हो भूले भटके बिछुड़े, उनको तारें ख़ुद तर जाएँ,
छल द्वेष दंभ पाखण्ड झूठ, अन्याय से निसि दिन दूर रहें,

जीवन हो शुद्ध सरल अपना, शुचि प्रेम सुधा रस बरसाएँ,
निज आन मान मर्यादा का, प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे,
जिस देव भूमि में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जाए,

वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर दत्त जाएँ,
पर सेवा पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जाएँ।

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