Sunday, April 18, 2010

प्रेम में कपट का स्थान नहीं...

तुलसीदास जी कहते हैं...प्रेम में कपट का कोई स्थान नहीं होता...

जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ [बालकाण्ड सोo ५७ (ख)]

प्रीति की सुंदर रीति देखिये कि जल भी [दूध के साथ मिलकर] दूध के समान भाव बिकता है; परन्तु फिर कपटरुपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है [दूध फट जाता है] और स्वाद (प्रेम) जाता रहता है।

6 comments:

  1. अति सुंदर.

    भाई, यदि आप अनुमति दें तो आपके ब्लॉग की एक-दो कथाओं को मैं अपने ब्लॉग पर साभार लगाना चाहता हूं. कृपया मेरा ब्लॉग देखें. http://hindizen.com

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  2. निशांत जी,धन्यवाद। बिलकुल लगाइए मेरे ब्लॉग की कथाओं को अपने ब्लॉग पर। अपने धर्म का ज्ञान जितना फैले उतना ही अच्छा होगा।

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  3. hiya


    Just saying hello while I read through the posts


    hopefully this is just what im looking for, looks like i have a lot to read.

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  4. kripya meri kavita padhe aur upyukt raay den..
    www.pradip13m.blospot.com

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  5. thanks for this nice post 111213

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