राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरौ जौ चाहसि उजियार॥
तुलसी दास जी कहते हैं... जीभ ऐसी दरवाजे की देहरी है जहाँ पर राम नाम का "मणि दीप" रख देने से बाहर और भीतर दोनों का अँधेरा मिट जाता है और इस तरह जहाँ भी चाहो, वहां उजाला हो जाता है। इसका अर्थ वाणी की सच्चाई, सफाई, मधुरता और राम नाम के ध्यान और जाप से तो है ही, बल्कि ऐसा दीप रख पाने के मन के संकल्प और साहस से भी है।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय॥
कबीर दास जी कहते हैं... मन के अहंभाव को खोकर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि अपने को तो शान्ति मिले ही, दूसरे भी प्रसन्न हो जाएँ।