तुलसीदास जी कहते हैं...
मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।।
कोई कितना भी योग, तप, ज्ञान या वैराग्य का पालन करे, उसको भगवान नहीं मिलेंगे जिसके मन में उनके लिए सच्चा प्रेम नहीं होगा।
हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रगट होंहि मैं जाना॥
भगवान हर जगह व्याप्त हैं। किसी को उन्हें कुछ दिखाने की जरुरत नहीं है। उन्हें आपके मन और जीवन दोनों की स्थिति का पूरा ज्ञान है। लेकिन वो प्रकट होते हैं, तो केवल उसी के लिए, जिसके मन में उनके लिए सच्चा प्रेम हो।
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