Friday, January 9, 2009

इक राम कथा

बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है रामानंद सागर जी ने इन रामचरितमानस के बोलों में...प्रेम के चरित्र के बारे में...

Overwhelming dialogue between Ram and Bharat on Duty Vs Love

जरूर सुनिये:
भरत संवाद १ और भरत संवाद २



प्रभु करि कृपा पाँवरी दीन्हीं।
सादर भरत शीश धरि लीन्हीं॥





राम भक्त ले चला रे राम की निशानी।
शीश पर खडाउं अँखियन में पानी॥

शीश खडाउं ले चला ऐसे। राम सिया जी संग हों जैसे॥
अब इनकी छाँव में रहेगी राजधानी। राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

पल छिन लागें सदियों जैसे। चौदह बरस कटेंगे कैसे॥
जाने समय क्या खेल रचेगा। कौन मरेगा कौन बचेगा॥
कब रे मिलन के फूल खिलेंगे। नदिया के दो कूल मिलेंगे॥
जी करता है यहीं बस जायें। हिल मिल चौदह बरस बितायें॥
राम बिन कठिन है एक घड़ी बितानी। राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

तन मन बचन उमगि अनुरागा। धीर धुरंधर धीरज त्यागा॥
भावना में बह चले धीर वीर ज्ञानी। राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

शीश पर खडाउं अँखियन में पानी।
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

1 comment:

Anonymous said...

the pleadings by Bharat before Ram & Ram's passing to Bharat his Padukas, displays eternal devotion of Bharat towards his brother-Ram ; and in return, the kindness & unselfish love of Ram towards his brother-Bharat.
This portrays that Kindness helps regulate emotions which does have a positive effect on one's health & lowers rate of depression as we find the level of confidence & healing power, in the facial expression of Bharat & Ram as well , at the end of their conversation .