तुलसीदास जी कहते हैं...प्रेम में कपट का कोई स्थान नहीं होता...
जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ [बालकाण्ड सोo ५७ (ख)]
प्रीति की सुंदर रीति देखिये कि जल भी [दूध के साथ मिलकर] दूध के समान भाव बिकता है; परन्तु फिर कपटरुपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है [दूध फट जाता है] और स्वाद (प्रेम) जाता रहता है।
Sunday, April 18, 2010
Thursday, April 15, 2010
विषय चिंतन
भगवदगीता अध्याय २
श्लोक ६२:
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते कामः कामातक्रोधोऽभिजायते॥
विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है।
(When one dreams of worldly objects, he gets infatuated with them. From infatuation arise Desires. Any obstruction in fulfilment of these desires creates Anger.)
श्लोक ६३:
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्म्रृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
क्रोध से अत्यंत मूढ़भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम होने से बुद्धि अर्थात ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है।
(Anger brings Delusion (Foolishness); from Delusion arises Confusion of right and wrong. The Confusion leads to Loss of Wisdom, which in turn spells utter destruction.)
श्लोक ६२:
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते कामः कामातक्रोधोऽभिजायते॥
विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है।
(When one dreams of worldly objects, he gets infatuated with them. From infatuation arise Desires. Any obstruction in fulfilment of these desires creates Anger.)
श्लोक ६३:
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्म्रृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
क्रोध से अत्यंत मूढ़भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम होने से बुद्धि अर्थात ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है।
(Anger brings Delusion (Foolishness); from Delusion arises Confusion of right and wrong. The Confusion leads to Loss of Wisdom, which in turn spells utter destruction.)
Friday, January 15, 2010
बिन प्रेम के भगवान नहीं
तुलसीदास जी कहते हैं...
मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।।
कोई कितना भी योग, तप, ज्ञान या वैराग्य का पालन करे, उसको भगवान नहीं मिलेंगे जिसके मन में उनके लिए सच्चा प्रेम नहीं होगा।
हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रगट होंहि मैं जाना॥
भगवान हर जगह व्याप्त हैं। किसी को उन्हें कुछ दिखाने की जरुरत नहीं है। उन्हें आपके मन और जीवन दोनों की स्थिति का पूरा ज्ञान है। लेकिन वो प्रकट होते हैं, तो केवल उसी के लिए, जिसके मन में उनके लिए सच्चा प्रेम हो।
मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।।
कोई कितना भी योग, तप, ज्ञान या वैराग्य का पालन करे, उसको भगवान नहीं मिलेंगे जिसके मन में उनके लिए सच्चा प्रेम नहीं होगा।
हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रगट होंहि मैं जाना॥
भगवान हर जगह व्याप्त हैं। किसी को उन्हें कुछ दिखाने की जरुरत नहीं है। उन्हें आपके मन और जीवन दोनों की स्थिति का पूरा ज्ञान है। लेकिन वो प्रकट होते हैं, तो केवल उसी के लिए, जिसके मन में उनके लिए सच्चा प्रेम हो।
Saturday, January 2, 2010
राम नाम अति मीठा है...
सुनिए अनूप जलोटा जी की आवाज में यहाँ पर
राम नाम अति मीठा है कोई गा के देख ले।
राम नाम अति मीठा है कोई गा के देख ले
आ जाते हैं राम कोई बुला के देख ले।
राम नाम अति मीठा है कोई गा के देख ले॥
जिस घर में अंधकार वहाँ मेहमान कहाँ से आये।
जिस मन में अभिमान वहाँ भगवान कहाँ से आये।
जिस घर में अंधकार उस घर में मेहमान कहाँ से आये।
जिस मन में अभिमान उस मन में भगवान कहाँ से आयें।
अपने मन मंदिर में जोत जला के देख ले।
आ जाते हैं राम कोई बुला के देख ले।
राम नाम अति मीठा है...
आधे नाम में आ जाते हैं, हो कोई बुलाने वाला।
बिक जाते हैं राम, कोई हो मोल चुकाने वाला।
आधे नाम में आ जाते हैं, हो कोई बुलाने वाला।
बिक जाते हैं राम, कोई हो मोल चुकाने वाला।
कोई शबरी, झूठे बेर खिला के देख ले।
आ जाते हैं राम, कोई बुला के देख ले।
राम नाम अति मीठा है...
सीता राम सीता राम सीता राम कहिये।
सीता राम सीता राम सीता राम कहिये।
सीता राम कहिये सीता राम कहिये।
जाही विधि राखें राम ताहि विधि रहिये।
राम नाम अति मीठा है कोई गा कर देख ले।
आ जाते हैं राम कोई बुला कर देख ले॥
राम नाम अति मीठा है कोई गा के देख ले।
राम नाम अति मीठा है कोई गा के देख ले
आ जाते हैं राम कोई बुला के देख ले।
राम नाम अति मीठा है कोई गा के देख ले॥
जिस घर में अंधकार वहाँ मेहमान कहाँ से आये।
जिस मन में अभिमान वहाँ भगवान कहाँ से आये।
जिस घर में अंधकार उस घर में मेहमान कहाँ से आये।
जिस मन में अभिमान उस मन में भगवान कहाँ से आयें।
अपने मन मंदिर में जोत जला के देख ले।
आ जाते हैं राम कोई बुला के देख ले।
राम नाम अति मीठा है...
आधे नाम में आ जाते हैं, हो कोई बुलाने वाला।
बिक जाते हैं राम, कोई हो मोल चुकाने वाला।
आधे नाम में आ जाते हैं, हो कोई बुलाने वाला।
बिक जाते हैं राम, कोई हो मोल चुकाने वाला।
कोई शबरी, झूठे बेर खिला के देख ले।
आ जाते हैं राम, कोई बुला के देख ले।
राम नाम अति मीठा है...
सीता राम सीता राम सीता राम कहिये।
सीता राम सीता राम सीता राम कहिये।
सीता राम कहिये सीता राम कहिये।
जाही विधि राखें राम ताहि विधि रहिये।
राम नाम अति मीठा है कोई गा कर देख ले।
आ जाते हैं राम कोई बुला कर देख ले॥
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