Sunday, October 5, 2008

Recently Heard...

परिंदों को मंजिलें मिलेंगी यकीनन, यह फैले हुए उनके पर बोलते हैं...
वोह लोग रहते है खामोश अक्सर, ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं ॥

Friday, October 3, 2008

Love

Love...A lot has been written on it...is deeply the essence of life. When understood properly and given unconditionally, love can heal the deepest wounds. There is no other power or material possession in this world that can fill the absence of love. It could be the love between a parent and a kid, a devotee and a god, a husband and a wife, a young and an elder, a student and a teacher and so on. Love begets love. A genuine devotion shows when offered. Omnipresent god can feel it in your heart, so can mortal beings. Love can take many forms and is so pure and simple and ego-free that many would find it hard to understand. They inspect every action, every word of the other to find shortcomings, fear, misbeliefs etc that they waste time and energy to even fathom the virtues of plain simple love. Our great books such as Ramcharitmanas explain love in not so specific words, but in actions.

प्रेम एक वह अमृत है जो जीवन का सार है और जो जीवन को सही दिशा दिखाता है ।

History has many examples...

Tulsidas ji says in Ramcharitmanas about the brotherly love between Ram and Bharat,

अयोध्या काण्ड दोहा २३९ चौपाई ४
कहत सप्रेम नाई महि माथा । भरत प्रनाम करत रघुनाथा ॥
उठे रामु सुनि पेम अधीरा । कहुं पट कहुं निषंग धनु तीरा ॥

जब भाई भरत प्रभु श्रीराम से मिलने के लिए आते हैं और सप्रेम भैया राम को सर नवा कर प्रणाम करते हैं। तो तुलसीदास जी दोनों भाइयों के प्रेम का वर्णन करके कहते हैं...कि दोनों में इतना प्रेम था कि भरत को देखकर राम इतने अधीर हो जाते हैं और मिलने के लिए ऐसे भागते हैं कि पट (कपड़ा) कहीं गिरता है, तरकश कहीं गिरता है और धनुष और तीर कहीं गिरते हैं ।

यही प्रेम सुदामा और कृष्ण भगवान के बीच में दिखता है। वो द्वारपाल के मुख से सुदामा का नाम सुनते ही अपने सिंघासन से दौड़ कर द्वार पर आते हैं और सुदामा को गले से लगा लेते हैं।

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