Tuesday, August 19, 2014

स्वदेश प्रेम

६८वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की सुन्दर पंक्तियाँ

जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रसधार नहीं।
 वह हृदय नहीं है पत्थर है,
 जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।