६८वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की सुन्दर पंक्तियाँ…
जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।
जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।
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