Tuesday, January 28, 2014

जीवन कर्म प्रधान

सनातन धर्म के दो मुख्य तत्व हैं --
अभ्युदय (भौतिक समृद्धि) और
निश्रेयस (आत्मिक सुख)
इसका एक अर्थ यह है कि बाहर से संसार और अंदर से सन्यास।    यही जीवन का सत्य है और यही कर्मयोग का सिद्धांत है।   बाहर की समृद्धि (धन, परिवार आदि)  के सुख में आसक्ति नहीं होनी चाहिए।   बस कर्म करते रहना चाहिए और भगवान को समर्पित करना चाहिए। 

तुलसीदास जी  कहते हैं.…
करम प्रधान विश्व रचि राखा  

(जीवन कर्म प्रधान  है,  इसमे फल की चिंता किये बिना कर्म करते रहना चाहिए।  असफलताओं से घबराना नहीं चाहिए जो तात्कालिक ही होती हैं।  )