Saturday, January 31, 2009

सरस्वती वंदना

आज वसंत पंचमी का पर्व है। सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं !!! आज के दिन सरस्वती वंदना अवश्य करनी चाहिए पीले वस्त्र धारण करके। आपके लिए यह वंदना मैं लिखता हूँ, जो मुझे सरस्वती शिशु मन्दिर में सीखने को मिली थी...

या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा॥


शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥

कहानी एक संत और बिच्छू की

एक बार एक बिच्छू पानी में गिर गया था। पास में बैठे ही एक संत ने उस बिच्छू को बाहर निकलने की कोशिश करते हुए देखा और वह अपने हाँथ से उसको निकालने लगे। लेकिन बिच्छू ने उनको डंक मार दिया और संत ने दर्द से हाँथ झटक दिया। इसलिए बिच्छू फिर पानी में नीचे गिर गया। संत ने फिर निकालने की कोशिश की और बिच्छू ने फिर डंक मार दिया और संत के हाँथ झटकने से फिर बिच्छू पानी में गिर गया। इसी तरह थोडी देर तक चलता रहा। संत निकालने की कोशिश करते रहे और बिच्छू डंक मारता रहा।

पास ही खड़े हुए एक व्यक्ति ने यह देखा और संत से बोला कि आप बेकार ही इस दुष्ट जानवर की सहायता कर रहे हैं, जबकि वह बार बार आपको ही चोट पहुँचा रहा है। तो इस पर संत ने उत्तर दिया कि "वह अपना धर्मं निभा रहा है, और मैं अपना धर्मं निभा रहा है"।

जैसा तुलसीदास जी कहते हैं...
उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥ (मंद - बुराई; अर्थात संत बुरा करने वाले का भी भला करते हैं)

इससे यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने धर्मं या कर्म को कभी भी दूसरो की प्रतिक्रिया या उनके कर्म पर नहीं आधारित रखना चाहिए। जैसे गीता में भगवान ने कहा है, हमको अपने कर्म करने चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

अवचेतन मन की सुद्रढ़ता

वेद शास्त्रों में कहा गया है कि "बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, और बुरा मत बोलो" । यही बात महात्मा गाँधी जी ने भी दोहरायी है। इन शब्दों का मतलब हमारी अवचेतन (subconscious) मनोवस्था से है। इन शब्दों को अकर्मण्यता के अर्थ से नहीं समझना चाहिए क्योंकि इनका असली अर्थ हमारे अवचेतन मन से बताया गया है। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हमको दुष्कर्मों को रोकना नहीं चाहिए।

बुरा देखने से हमारे मन में बुरे विचार आते हैं और अनजाने ही वोह हमारे मन पर प्रभाव छोड़ जाते हैं। यह बुरे चित्र आपके मन में कई तरह से आ सकते हैं, जैसे बुरी फिल्में देखने से, बुरी संगत में रहने से, बुरे व्यवहार को देखने से, बुरे चित्र देखने से आदि।

बुरा सुनने से हमारे विचार प्रदूषित होते हैं। जैसे किसी की बुराई सुनना, किसी की कुटिल बातें सुनना, किसी की अपमानजनक बातों को सुनना और ह्रदय में ले लेना, किसी की घृणा से भरी हुई बातें सुनना। कहते हैं सुनी हुई बातों पर ऐसे ही विश्वास नहीं कर लेना चाहिए।

बुरा बोलना तो कतई भी नहीं चाहिए क्योंकि हम अपनी ही जिह्वा का प्रयोग करके यदि विष भरी बातें दूसरो को सुनायेंगे, तो उन पर हमारा भी भरोसा बढता जायेगा। हमारी आत्मा सब जानती है, वह जानती है की हम कितना सच और कितना झूठ बोल रहे हैं। अपने आप को इश्वर का एक अंश मानकर हमेशा सत्य की राह पर चलना चाहिए। कभी अनजाने में, क्रोध में असत्य वचन जरुर निकलेगा, लेकिन सत्य पर चलने के लिए अभ्यास करते रहना चाहिए। अगर किसी को अपनी भूल का अहसास हो जाए, उसे तो भगवान् भी माफ़ कर देते हैं। यही सोच कर हमने जो ग़लत बोला है, वह भविष्य में न हो, इसका प्रयत्न करना चाहिए।

अंत में तुलसीदास जी की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिनमें उन्होंने दृढ़ यानी अडिग चीजों का वर्णन करते हुए संज्ञा दी है: एक तो अंगद का पैर, दूसरा सती मन
वो कहते हैं...
भूमि न छांड़त कपि चरन देखत रिपु मद भाग ।
कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग॥
वानर अंगद का चरन पृथ्वी नहीं छोड़ रहा था जैसे करोड़ों विघ्न आने पर भी संत का मन नीति नहीं छोड़ता है। यह देख कर शत्रुओं का मद (घमंड) दूर हो गया।

दूसरी जगह पर वो सती मन की तुलना शिव धनुष से करते हैं। जब घमंडी राजाओं ने सीता स्वयम्वर में शिव धनुष को उठाने की लाख चेष्टा की थी और वह हिला भी नहीं था। तब संत तुलसी कहते हैं...
डगहि न संभु सरासन कैसे। कामी बचन सती मन जैसे॥
संभु अर्थात शिव, और सरासन अर्थात धनुष। शिव धनुष अडिग था इस तरह, जैसे किसी कामी के वचन से सती स्त्री का मन नहीं डोलता है।

इन बातों का तात्पर्य यही है कि हमको अपने अवचेतन मन को सुद्रढ़ बनाना चाहिए। सुद्रढ़ अर्थात सु+दृढ। अच्छी बातों से तीनों इन्द्रियों (आँख, कान और मुंह) से वही ग्रहण करना चाहिए जो हमें नीति के मार्ग पर ले जाए। यही हमारा मंगल करेगा क्योंकि, जो हम बोयेंगे, वही काटेंगे। यह तो बस समय की बात है।

Saturday, January 17, 2009

सिय-राम वरण और गौरी पूजा

एक बार भगवान विष्णु और शिव ने नारद जी के साथ हास ही हास में विश्वमोहिनी स्वयम्वर में उनका विवाह रोक दिया था। विष्णु जी ने नारद को कुरूप बन्दर का चेहरा देकर स्वयं उस सुंदरी द्वारा विवाह कर बैठे क्योंकि उस सुंदरी को यह वरदान था कि उसका पति तीनों लोकों का स्वामी बनेगा। बाद में यह चाल जानकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने विष्णु जी को शाप दिया कि उनकी पत्नी का भी उनसे वियोग हो जायेगा जैसे आज उनका उनकी होनी वाली पत्नी से हो गया है, और बन्दर ही उनकी सहायता करके पत्नी को वापस दिलाएंगे।

इस शाप के बाद जब इन्द्रजीत (रावण-पुत्र मेघनाथ) ने इन्द्र को हराकर रावण को छुडाया था, तब नारद जी ने लक्ष्मी जी से कहा कि अब आपका पृथ्वी पर अवतार लेने का समय आ गया है। तब देवी ने जनक के घर धरती से जन्म लिया था और उनका श्री राम से विवाह का संयोग निश्चित था।

इसी सुंदर अवसर का नीचे तुलसीदास वर्णन करते हैं:

(Listen it at गौरी पूजा १ और गौरी पूजा २)

जानकी जी स्वयम्वर से पहले पूजा करने गौरी मन्दिर जाती हैं और उधर गुरु की पूजा के लिए फूल चुनने राम और लक्ष्मण उसी वाटिका में आते हैं।


लताभवन तें प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ।

निकसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पतल बिलगाइ॥
From the creeper-covered bower emerged the two brothers at that moment. Verily like a pair of spotless moons tearing through a veil of dark clouds.

Then, the girlfriend of Sita after having seen the two brother in the garden sings to Sita on asking the reason of her cheer...
बाग बिलोकन राज कुंवर दोउ आए।

ऐ सखी उनके अतुल रूप की सोभा कही न जाए॥
Two princes have come to see the garden. Dear girlfriend, such is their measureless beauty,That my words cannot describe their grace.

लता ओट तब सखिन्ह लखाए। स्यामल गौर किसोर सुहाए॥
Then the girlfriend showed Site the princes by the creeper. The youthful brothers, one dark, the other fair, were a delight.

सुमिरि सीय नारद बचन उपजी प्रीति पुनीत।
चकित बिलोकति सकल दिसि जनु सिसु म्रृगी सभीत॥
Remembering the words of Narad, the celestial sage, Sita was filled with innocent, pure love.She cast her anxious eyes all around her, Like a young startled fawn.

देखि रूप लोचन ललचाने। हरषे जनु निज निधि पहिचाने॥
On beholding the beauty of Ram, her enraptured eyes filled with longing. And the delight of one who has found long-lost treasure.

अधिक सनेहँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी॥
Sita was faint with an excess of love. Like the love-athirst chakor gazing at the autumn moon.

लोचन मग रामहि उर आनी। दीन्हे पलक कपाट सयानी॥
Receiving Ram into her heart by the pathway of her eyes, She cleverly closed on him the doorway of her eyelids, as if she saved his image in her eyes.

जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
Glory to you, O' Daughter of the Mountain King. Glory to you, for you gaze upon Lord Shiva, as does the love-lorn chakor at the moon.
Glory to you, O' Mother of lord elephant-god Ganesh and six-faced lord Kartikeya. O' Cosmic Mother with lightening-bright presence.

देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होंहि सुखारे॥
All who adore your lotus feet, O' Goddess, are blessed with happiness, be they men, gods or sages.

मोर मनोरथ जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेही॥
You know the longing in my heart, For you dwell in the hearts of all.For this have I refrained from declaring my love aloud.

बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी॥
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ॥
Goddess Girija was overcome by Sita's humble devotion. And, a garland slipped from her divine hands, And, the beatific image smiled in benediction.
Reverently did Sita place the divine blessing on her bowed head. And thus spoke the Goddess, her own heart full of joy:

सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामाना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
"Hear, O' Sita, my infallible blessing. Your heart's desire shall be fulfilled. For sage Narad's words are ever true and pure, Yours shall be the suitor upon whom your heart is set."

दोहा -
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।

तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
He who is engraved in your heart will be your husband। He that is dark-hued and naturally handsome.
The merciful Lord who is omniscient, knows your loving heart, the love enshrined there.
Upon hearing the Goddess utter such gracious blessing, Sita was overcome with joy.
Poet Tulsidas recounts how a devout Sita prayed again and returned to the palace with joy in her heart.

Tuesday, January 13, 2009

मकर संक्रांति

कल १४ जनवरी से मकर संक्रांति का पर्व शुरू हो रहा है। सूर्य इस दिन उत्तरायण में प्रवेश कर जाता है जिसका बहुत ही महत्व है। यह शुभ कार्यों को प्रारम्भ करने का भी दिन होता है।

तमिलनाडु में पोंगल और उत्तर भारत में लोहड़ी के नाम से भी मनाया जाता है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश भी होता है। इसी दिन से प्रयाग में माघ मेला शुरू हो जाता है जो एक महीने तक चलता है। हमारे यहाँ खिचड़ी का भी विधान है। सुबह सब लोग स्नान और पूजा करके दान देते हैं। तब गृहस्थ के बाकी कार्य आरम्भ होते हैं। इस दिन सूर्य पूजा करके जल जरुर चढाना चाहिए और मन में यह संकल्प करना चाहिए कि, 'हे सूर्य देव, अपनी ही भांति मेरा मन ज्योतिर्मय करो और सदा धर्म की राह पर चलने का साहस और विवेक दो'।

Saturday, January 10, 2009

Funny little Bart!!

One thing I love is The Simpsons. A few nights ago, the episode aired had a funny story with little Milhouse breaking up with his girlfriend. His friend Bart doesn't like his being occupied with her. In the end, when the gf joins a nun's school, Milhouse asks Bart...

Milhouse: ``Bart, you think I can ever find another one like her?''
Bart: ``You're asking the wrong guy, Milhouse. They all look alike to me. Now let's go whip donuts at old people.''

Ha ha ha...so funny coming out of that naughty little Bart Simpson. You've got to see it.

Script at http://www.snpp.com/episodes/8F22.html and,
Bart's other lines at http://bart.squarelogic.net/quotes.php
....Ayekaramba!!!

Some more...

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But the point is, you're gonna make it Lis and I'm gonna stick by you.
Then I'll just stick by you in secret.
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Part of this D-minus [in my report card] belongs to god.
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No offense but what you don't know could fill a warehouse.
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I know that's funny, but I'm just not laughing!
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I'm only 10 and I already have 2 mortal enemies.
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Oookkk! But on my way I'm gonna be doing this, if you get hit, it's your own fault.
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Why would anybody wanna touch a girls butt? That's where kudu's come from!
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Hot stuff coming through!
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You're out there somewhere... But where? WHERE???
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“[Bart saying to Moe over the phone] Hi. I'm looking for a man first name hugh last name jass. [Moe [calling out for the man in his bar]: ok, has anyone seen a Hugh Jass? hello I'm looking for a Hugh Jass!]”
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:-)

Friday, January 9, 2009

इक राम कथा

बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है रामानंद सागर जी ने इन रामचरितमानस के बोलों में...प्रेम के चरित्र के बारे में...

Overwhelming dialogue between Ram and Bharat on Duty Vs Love

जरूर सुनिये:
भरत संवाद १ और भरत संवाद २



प्रभु करि कृपा पाँवरी दीन्हीं।
सादर भरत शीश धरि लीन्हीं॥





राम भक्त ले चला रे राम की निशानी।
शीश पर खडाउं अँखियन में पानी॥

शीश खडाउं ले चला ऐसे। राम सिया जी संग हों जैसे॥
अब इनकी छाँव में रहेगी राजधानी। राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

पल छिन लागें सदियों जैसे। चौदह बरस कटेंगे कैसे॥
जाने समय क्या खेल रचेगा। कौन मरेगा कौन बचेगा॥
कब रे मिलन के फूल खिलेंगे। नदिया के दो कूल मिलेंगे॥
जी करता है यहीं बस जायें। हिल मिल चौदह बरस बितायें॥
राम बिन कठिन है एक घड़ी बितानी। राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

तन मन बचन उमगि अनुरागा। धीर धुरंधर धीरज त्यागा॥
भावना में बह चले धीर वीर ज्ञानी। राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

शीश पर खडाउं अँखियन में पानी।
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥