बहुत दिनों से यह चौपाई सुनते सुनते मैंने सोचा कि देखें इसका प्रयोग किस सन्दर्भ में हुआ है। शिव जी ने सती जी द्वारा राम परीक्षा लेने से पहले यह कहा है, जब उनके बहुत समझाने पर भी सती नहीं मानतीं हैं। लेकिन इस चौपाई का इस्तेमाल हर जगह होता है क्योंकि यही सत्य है...
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ [बालकाण्ड दोहा ५१ चौपाई ४]
जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे।
उसी तरह एक और चौपाई जो शिवजी नारद जी को कहते हैं। ऐसा उन्होंने तब कहा था, जब नारद जी को अंहकार आ गया था कि उन्होंने भी कामदेव को जीत लिया है...
राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई। करै अन्यथा अस नहिं कोई॥ [बालकाण्ड दोहा १२७ चौपाई १]
श्रीरामजी जो करना चाहते हैं, वही होता है। ऐसा कोई नहीं जो उसके विरुद्ध कर सके।
Thursday, June 4, 2009
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