ज्यादातर लोगों के लिए सच का मतलब सिर्फ़ सच बोलने में ही होता है। लेकिन असली सच का मतलब होता है... मन, कर्म और वचन का सत्य । इन तीनों के मेल से जो सत्य आता है, वही परम सत्य है। किंतु यह सत्य धर्मानुसार ही होना चाहिए।
यदि इन तीनों का मेल किसी सत्य में नहीं होता है, तो उस सत्य में विकार हो सकते हैं। जैसे...
ईर्ष्या/छल -- मन में कोई भावना, किंतु वचन में कुछ और
ढोंग/पाखंड/छल -- कहनी कुछ, किंतु करनी कुछ और
अहंकार/हठ -- मन के विवेक में कुछ, किंतु कर्म में कुछ और
जब हम परम सत्य नहीं बोलते या नहीं बोल पाते, तब यही विकार हमारे व्यवहार में आ जाते हैं। इस बात को जान लेने और ध्यान में रखने से ही हम अपने व्यवहार की जटिलता को समझ सकते हैं। परम सत्य को अपनाना कठिन जरुर होता है और तप करना पड़ता है, लेकिन इससे आपको हमेशा शान्ति और सुख का अनुभव होता रहेगा। जैसा कि अंग्रेज़ी में भी कहते हैं... "The Truth will set you free"
इसका मतलब यही है कि सत्य और सिर्फ़ परम सत्य ही मन, कर्म और वाणी के इस अनुपम तालमेल से आपके व्यक्तित्व और व्यवहार की बहुत से विकारों (या व्याधियों) को दूर कर सकता है।
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