श्री गीता जयंती जी के इस पुण्य अवसर पर.…
श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय के तीसवें श्लोक में भगवान कहते हैं.…
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ ३० ॥
जो मुझे सर्वत्र देखता है (अर्थात हर एक कण में मेरे व्याप्त होने के रहस्य को जानता है) और मुझमें समस्त सृष्टि को देखता है(अर्थात यह जानता है कि सम्पूर्ण सृष्टि मुझमें स्थित है), मैं उसकी दृष्टि से दूर नहीं होता और न ही वह मेरी दृष्टि से दूर होता है।
यही ज्ञान मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम माता शबरी को नवधा भक्ति के रूप में देते हैं और कहते हैं कि भक्ति का सातवाँ प्रकार सारे जगत को राममय देखने में है .…
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।। (अरण्यकाण्ड)
भौतिक जीवन में यह करने में जब कठिन हो जाता है, इन प्रभु ज्ञान पंक्तियों को जो लोग मन में रखते हैं, भगवान उनका पग पग पर मार्ग दर्शन करते रहते हैं। जब आपका विश्वास भगवान पर और दृढ एवं अटल हो जाएगा, तब आप स्वयं ही निर्भय हो जाएंगे।
श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय के तीसवें श्लोक में भगवान कहते हैं.…
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ ३० ॥
जो मुझे सर्वत्र देखता है (अर्थात हर एक कण में मेरे व्याप्त होने के रहस्य को जानता है) और मुझमें समस्त सृष्टि को देखता है(अर्थात यह जानता है कि सम्पूर्ण सृष्टि मुझमें स्थित है), मैं उसकी दृष्टि से दूर नहीं होता और न ही वह मेरी दृष्टि से दूर होता है।
यही ज्ञान मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम माता शबरी को नवधा भक्ति के रूप में देते हैं और कहते हैं कि भक्ति का सातवाँ प्रकार सारे जगत को राममय देखने में है .…
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।। (अरण्यकाण्ड)
भौतिक जीवन में यह करने में जब कठिन हो जाता है, इन प्रभु ज्ञान पंक्तियों को जो लोग मन में रखते हैं, भगवान उनका पग पग पर मार्ग दर्शन करते रहते हैं। जब आपका विश्वास भगवान पर और दृढ एवं अटल हो जाएगा, तब आप स्वयं ही निर्भय हो जाएंगे।
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