Saturday, January 31, 2009

कहानी एक संत और बिच्छू की

एक बार एक बिच्छू पानी में गिर गया था। पास में बैठे ही एक संत ने उस बिच्छू को बाहर निकलने की कोशिश करते हुए देखा और वह अपने हाँथ से उसको निकालने लगे। लेकिन बिच्छू ने उनको डंक मार दिया और संत ने दर्द से हाँथ झटक दिया। इसलिए बिच्छू फिर पानी में नीचे गिर गया। संत ने फिर निकालने की कोशिश की और बिच्छू ने फिर डंक मार दिया और संत के हाँथ झटकने से फिर बिच्छू पानी में गिर गया। इसी तरह थोडी देर तक चलता रहा। संत निकालने की कोशिश करते रहे और बिच्छू डंक मारता रहा।

पास ही खड़े हुए एक व्यक्ति ने यह देखा और संत से बोला कि आप बेकार ही इस दुष्ट जानवर की सहायता कर रहे हैं, जबकि वह बार बार आपको ही चोट पहुँचा रहा है। तो इस पर संत ने उत्तर दिया कि "वह अपना धर्मं निभा रहा है, और मैं अपना धर्मं निभा रहा है"।

जैसा तुलसीदास जी कहते हैं...
उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥ (मंद - बुराई; अर्थात संत बुरा करने वाले का भी भला करते हैं)

इससे यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने धर्मं या कर्म को कभी भी दूसरो की प्रतिक्रिया या उनके कर्म पर नहीं आधारित रखना चाहिए। जैसे गीता में भगवान ने कहा है, हमको अपने कर्म करने चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

1 comment:

Anonymous said...

the said story of Sant & Bichchhoo does apply to all human-beings more so in bad times among the loved ones. However , apney "dharm" ko nibhatey hi jana - the learnings from this irrespective of results, is the right way to sacred peace of human soul.