Saturday, February 14, 2009

संतान धर्म

कर्तव्य भावना से सदा बड़ा होता है। इस बात का उदाहरण हमें इतिहास और शास्त्रों में हर जगह मिलता है। जन्म जन्मान्तर तक हमें संतान धर्म का पालन करने वाले देखने को मिले हैं। ऐसे ही २ उदाहरण मैं आपको यहाँ सुनाता हूँ...

१. राम दशरथ कथा (संवाद १, संवाद २, संवाद और संवाद ४)
राम कहते हैं... पुत्र वही बड़भागी होता है जो पिता का मनोरथ जान लेने से ही उस पर आचरण कर सके।
इन संवादों में कर्तव्य परायणता और स्वभाव की निमर्लता का ऐसा उदहारण और कहीं नहीं मिलता है।

२. मेघनाद की वीरता और पुत्र-धर्म की करुण कहानी... (भाग १ और भाग २)

लक्ष्मण की प्रभुता का अहसास होने के बाद मेघनाद जब पिता रावण के पास आता है, तब का यह संवाद है रामानंद सागर जी की रामायण में...

प्रेयसी दो अन्तिम बार विदा, यह सेवक ऋणी तुम्हारा है।
तुम भी जानो मैं भी जानूं, यह अन्तिम मिलन हमारा है।
मैं मातृ चरण से दूर चला, इसका दारुण संताप मुझे,
पर यदि कर्तव्य विमुख होऊंगा, जीने से लगेगा पाप मुझे।
अब हार जीत का प्रश्न नहीं, जो भी होगा अच्छा होगा।
मर कर ही सही पितु के आगे, बेटे का प्यार सच्चा होगा।
भावुकता से कर्तव्य बड़ा, कर्तव्य निभे बलिदानों से।
दीपक जलने की रीत नहीं, छोड़े डरकर तूफानों से।
यह निश्चय कर बढ़ चला वीर, कोई उसको रोक नहीं पाया।
चुपचाप देखता रहा पिता, माता का अन्तर भर आया।

ऐसा कहकर अपनी वीरगति निश्चित जानकर भी मेघनाद युद्धभूमि में उतर जाता है। राक्षस कुल में जन्म लेकर भी उस वीर ने अपने पुत्र धर्म का एक अतुल उदहारण इस जगत में प्रस्तुत किया।

1 comment:

Anonymous said...

followings of sanatan dharm's preaching about "Duty" in Hindu society, is prevelent from the time unknown.
The words spoken by Ram & recited here in ur blog, conveys hidden sense of deep gratitude for getting an opportunity to perform a duty which took birth in the soul of father-Dashrath .
So is, brave Meghnath to his father Ravan.
May every one realises in today's hard & fast moving time, for being grateful to one's parents by which one will continue to seek out for duty above self-esteem.