Thursday, February 5, 2009

स्वाध्याय (Study of 'Self')

पिछले लेख में से स्वाध्याय विषय को आगे बढाते हुए उसके बारे में आज बात करते हैं। इस विषय की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि अधिकतर लोग अपने आप को नहीं जानते हैं। जैसा कि पतंजलि योग में कहा गया है कि अपना असली स्वरुप आत्मा होती है। लेकिन हम जो रोज़ व्यवहार करते हैं वोह तो हमारी सामाजिक और पारिवारिक प्रभावों से बनता है। जन्म से कोई बैर, प्रीत या अंहकार लेकर पैदा नहीं होता। वह तो हमारे बड़े होते समय सिखने को मिलते हैं। यह तो हमारी शिक्षा, संगत और स्वयं के अभ्यास पर निर्भर करता है।

इन्हीं सब कारणों से यह जरुरी हो जाता है कि हम बहुत गंभीरता से स्वाध्याय करें क्योंकि प्रकृति के दोष हमारे अन्दर अनजाने में ही घर बना सकते हैं। यह दोष, जैसे कि मैंने पिछले लेख में बताये थे, ७ प्रकार के होते हैं -- काम,क्रोध, लोभ, मोह, माया, मद और मत्सर। इनमें से कुछ का हमारे अंदर होना बहुत स्वाभाविक है। हमको इन्हें दूर करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए। लेकिन उससे भी जरुरी यह होता है कि हर वक्त हमको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि इस समय कौन सा दोष हम पर हावी है। जब भी कभी आप किसी से कुछ कहें या करें, उसी वक्त यह सोचिये कि यह क्यों कह रहे या कर रहे हैं। ज्यादातर आप पायेंगे कि यह क्रोध या मद का असर है। कभी कितना भी गुस्सा आए, उसको उसी समय या बाद में सोचना जरुर चाहिए। तभी हमको अपने अन्दर सुधार का मौका मिलेगा। अन्यथा वह कृत्य आपको संतुष्ट करके आपके स्वभाव का एक हिस्सा बन जायेगा। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हमारा बुरा काल ही हमसे यह करवा रहा है क्योंकि यह, योग के अनुसार, आत्मा का स्वभाव नहीं है। तुलसी दास जी कहते हैं...

काल दंड गहि काहू न मारा। हरहि धर्म बल बुद्धि बिचारा॥

अर्थात काल कभी हमको डंडे से नहीं मारता है, वह तो सिर्फ़ हमारा धर्म, बुद्धि, बल और विचार शक्ति को हर लेता है। बाकी काम तो हम अपने आप ही कर देते हैं। इसलिए हमको ध्यान में रखना चाहिए कि हमारा धर्म और विवेक न छूटने पाये। इसकी एक परीक्षा यह भी है कि अगर हम अपनी ही धुन में बड़ों की बातों की अनदेखी करते हैं, तो हम शायद इनमे से किसी दोष की वजह से ही काल के चक्कर में अटके हो सकते हैं। लेकिन अगर हम उसी समय अपनी स्वाभाविक प्रतिक्रिया को एक मिनट किनारे रख कर विचार करें तो हमको स्वाध्याय में सफलता मिलेगी। रणभूमि में ही युद्ध की कला असली तरीके से सीखी जा सकती है, उसी तरह स्वाध्याय भी उसी वक्त किए गए विचारों से जल्दी शिक्षा देता है। रावण ने मरते वक्त राम-लक्ष्मण को शिक्षा दी थी कि ग़लत राह बहुत आसान होती है, और सही राह पर चलने के लिए साहस और कठिन अभ्यास चाहिए। ऐसा आपको हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।

1 comment:

Anonymous said...

Yes ! swadhyaya is the undebateable way to keep away intricacies related to 7 ills of life .
Rightly said by Tulsidas ji.
The bad time confiscates one's benign 4 powers of human-soul including the correct but difficult path directed by loving elders , to keep control on one's conscience.