तुलसीदास जी कहते हैं...प्रेम में कपट का कोई स्थान नहीं होता...
जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ [बालकाण्ड सोo ५७ (ख)]
प्रीति की सुंदर रीति देखिये कि जल भी [दूध के साथ मिलकर] दूध के समान भाव बिकता है; परन्तु फिर कपटरुपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है [दूध फट जाता है] और स्वाद (प्रेम) जाता रहता है।
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6 comments:
अति सुंदर.
भाई, यदि आप अनुमति दें तो आपके ब्लॉग की एक-दो कथाओं को मैं अपने ब्लॉग पर साभार लगाना चाहता हूं. कृपया मेरा ब्लॉग देखें. http://hindizen.com
निशांत जी,धन्यवाद। बिलकुल लगाइए मेरे ब्लॉग की कथाओं को अपने ब्लॉग पर। अपने धर्म का ज्ञान जितना फैले उतना ही अच्छा होगा।
hiya
Just saying hello while I read through the posts
hopefully this is just what im looking for, looks like i have a lot to read.
kripya meri kavita padhe aur upyukt raay den..
www.pradip13m.blospot.com
thanks for this nice post 111213
sach baat hai aapki. narayan narayan
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