कुछ चीजों पर समय नहीं बर्बाद करना चाहिए क्योंकि उन पर प्रयत्न विफल ही हो जाता है। इनमें ओछे लोगों की मित्रता भी एक है। रहीम जी ने एक दोहे में कहा है...
रहिमन ओछे नरन से बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के दोउ भांति विपरीत॥
इसका अर्थ है कि ओछे लोगों, जिनकी कथनी और करनी विश्वास के योग्य नहीं है, से न तो दोस्ती भली है, न ही दुश्मनी भली। जिस प्रकार कुत्ते के काटने (दुश्मनी) और चाटने (स्नेह) दोनों में ही अपना नुक्सान हो सकता है, उसी प्रकार ओछा व्यक्ति आपसे स्नेह करके भी आपको धोखा दे सकता है।
इसी सन्दर्भ में तुलसीदास जी ने कहा है कि केले (कदरी) के पेड़ में कितना भी पानी डाल दो, वह तभी फल देता है जब उसको काट दो। उसी तरह नीच तभी मानता है जब उसको डांटना पड़े।
काटेहि पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोइ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥ (सुन्दरकाण्ड दो० ५८)
इसी प्रकार कुछ तरह के लोगों पर समय नहीं बर्बाद करना चाहिए। इनमें से तुलसीदास जी कहते हैं...
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुन्दर नीती॥
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥ (सुन्दरकाण्ड दो० ५७ चौ० २/३)
मूर्ख से विनती, धूर्त से स्नेह, स्वाभाविक कंजूस से उदारता की बातें, ममता में फंसे हुए से ज्ञान की बातें, बहुत लालची से वैराग्य की बातें, क्रोधी से शांति और कामी से भगवान् की कथा का फल वैसा ही होता है, जो बंजर धरती में बीज बोने से होता है। इनका परिणाम व्यर्थ ही होता है।
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1 comment:
बहुत पते की बात बताई आपने वो भी बहुत सुन्दर ढंग से | उदाहरण लाजवाब |
मेरी रचना देखें-
मेरी कविता:सूने नैन
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