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Sunday, March 22, 2009

भय -- एक विकृति

आज एक अक्षरपीठ की पुस्तक पढ़ते समय बहुत ही अच्छा प्रवचन दिखा, जो भय के बारे में बताता है। इस संसार में भय तो सभी के अंदर रहता है। स्वामी जी कहते हैं... भय के ३ प्रकार होते हैं -- सामाजिक भय (किसी कृत्य के उजागर होने पर), प्रकृतिगत भय (स्वभाव से डरपोक होने पर, मृत्यु भय आदि) और आध्यात्मिक भय (भगवान देख रहे हैं जानकर कुमार्ग पर चलने का डर)। इनमें से अपयश का भय सबसे बड़ा होता है। भय की शक्ति अपार होती है क्योंकि वह मन को ग्रसित कर लेता है और मन से शक्तिवान तो और कुछ भी नहीं होता इस संसार में। मन में काल्पनिक द्रश्य आने लगते हैं, प्राणी विवेक खो बैठता है और ग़लत कार्य कर बैठता है। इसीलिए भय को एक बड़ी मानसिक विकृति कहा गया है।

इस अवस्था में निर्भय होने का सरल उपाय भगवान् की भक्ति में है और उनके शरणागत होने में हैं। ४ प्रकार के भक्तगण होते हैं जिनको भय नहीं होता --
विश्वासी -- इस भक्त ने भगवान् और उनके साधु के वचन में अतिशय विश्वास प्राप्त कर लिया हो। उसे भय नहीं रहता।
ज्ञानी -- आत्मज्ञान का बल होने और अपने को भगवत्भक्त और ब्रह्मस्वरूप मानने वाले भक्त को भी भय नहीं रहता।
शूरवीर -- इन्द्रियों और अंतःकरण पर विजय प्राप्त करके इस भक्त ने परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन न करने का प्रण करके अपने को कृतार्थ मन हो। इसलिए वोह भयमुक्त रहता है।
प्रीतिवान -- इस भक्त को तो पतिव्रता की दृढ़ भक्ति और समझ होती है। जैसे पतिव्रता स्त्री की प्रीति और मन की दृढ़ता पर भगवान भी नतमस्तक हो जाते हैं, वैसा ही प्रेम वह इस भक्त के साथ भी करते हैं और उसे भयमुक्त करते हैं।

लगातार अभ्यास और श्रद्धा से ही भय से मुक्ति मिलती है। इसके लिए परिश्रम करते रहना चाहिए। विघ्न बाधाओं से डरकर कर्तव्य नहीं छोड़ने चाहिए। यही धर्म की नीति है। शास्त्री जी एक श्लोक कहते हैं...

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः।
विघ्नै: पुनःपुनरपि प्रतिहन्यमाना: प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति॥

अर्थ: कनिष्ठ पुरूष विघ्न के भय से कार्य आरम्भ ही नहीं करते। मध्यम पुरूष कार्य आरम्भ तो करते हैं, किंतु विघ्न आने पर छोड़ देते हैं। और उत्तम पुरूष बार-बार विघ्न आने पर भी आरम्भ किए हुए कार्य को अधूरा नहीं छोड़ते।

भय का मन में आना स्वाभाविक है। लेकिन यह विचार मन में रखना चाहिए, कि हमारे जीवन का असली लक्ष्य क्या है। कभी कभी मायाजाल में फंसकर हम इस असली लक्ष्य पर से नज़र हटा लेते हैं और मन के भ्रम में भटक जाते हैं। यदि हमको यह समझ में आ जाए और हर समय उसका भान रहे, तो किसी भी चीज का भय नहीं रहेगा। भय का असली तोड़ यही श्रद्धा है जो हमारे अपने विश्वास में होती है कि किसी भी परिस्थिति में भगवान् हमारा साथ नहीं छोडेंगे।