निम्नांकित अर्थ मेरा अपनी मंद बुद्धि का समझा हुआ है। यदि यह ग़लत है, तो क्षमा करें और सही अर्थ सुझाएँ।
कबीर दास का यह दोहा जीवन के मोह के बारे में कहता है कि हमको जीवन के उतार चढाव में निर्भाव रहना चाहिए।
जाता है तो जान दे, तेरी दशा ना जाई।
केवटिया की नाव ज्यूँ, चढ़े मिलेंगे आई॥
अर्थ: कबीर दास कहते हैं..... जो जाता है उसको जाने देना चाहिए। व्यर्थ में अपनी दशा ख़राब नहीं करनी चाहिए। क्योंकि जिसको आना होता है, वो केवट की नाव चढ़कर आ जाता है। इस सन्दर्भ में कबीर दास भगवान् राम को ओर इशारा करते हैं, जो यमुना नदी के उस पार केवट की नाव पर चढ़ कर शबरी से मिलने पहुँच गए थे।
No comments:
Post a Comment