Monday, September 28, 2009

या अनुरागी चित्त की...

या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यों-ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होइ॥

कोई भी इस प्रेमी ह्रदय की गति को नहीं समझ सकता है। जैसे जैसे यह श्याम रंग (अर्थात भगवान के प्रेम) में डूबता है, वैसे वैसे ही यह उज्जवल होता जाता है और मन शुद्ध होता जाता है। (कवि ने श्याम (यानि काले) रंग में डूबने से उजला होते दिखाया है)

सात्विक जीवन मूल्यों में भगवान का वास माना गया है। जैसे कबीर दास कहते हैं, जहाँ क्षमा, वहां आप। उसी तरह अच्छे गुण दूसरों के नहीं, बल्कि अपने ही भले के लिए होते हैं।

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